मैं मनिहारी हूँ...
मनिहारी गंगा और कोसी के संगम पर बसा इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम है। मेरा नाम भले छोटा हो, लेकिन मेरी पहचान, मेरी धरोहर और मेरा इतिहास किसी बड़े शहरों से कम नहीं। सदियों से मैं व्यापार, संस्कृति, प्रकृति का मिलन स्थल रहा हूँ। किंतु विडंबना यह है कि समृद्ध संभावनाओं के बावजूद मैं आज भी प्रशासनिक उदासीनता और लापरवाही का शिकार हूँ। आज मैं आपको अपने मन की वे बातें बताना चाहता हूँ, जिन्हें सुनने वाला शायद कोई नहीं।
मेरा नामकरण
मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण यहां अपने खोया हुआ रत्न (मणि) को ढूंढते हुए आए थे, जिसके कारण इस स्थान का मनिहारा नाम पड़ा, जो समय के साथ मनिहारी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
मेरा गंगा घाट - आस्था और अव्यवस्था
मेरे सीने से बहती गंगा, मेरी आत्मा की पहचान है। गंगा किनारे मेरा घाट न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि जीवन और जीविका का सहारा भी है। लोग यहाँ दूर-दूर से जैसे नेपाल, म्यांमार, असम, बंगाल गंगा स्नान करने आते हैं, नाव-जहाज से सफर करने आते है और साहेबगंज(झारखण्ड), सकरीगली, महाराजपुर, पीरपैंती, भागलपुर इत्यादि को जाते हैं। कभी यहाँ रेलवे के द्वारा सकरीगली के लिए स्टीमर चलाया जाता था। प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह है की अभी भी यहाँ व्यवस्थाओं कि कमी है जैसे सीढ़ीनुमा घाट, यात्रियों को बैठने के लिए उचित व्यवस्था, पीने के लिए साफ़ पानी, नाव या जहाज चलने का समय सारणी इत्यादि। यहां प्रतिदिन दर्जनों अंतिम संस्कार होते हैं। परंपरागत रूप से लकड़ी से चिता जलाकर दाह संस्कार किया जाता है, जिससे न केवल अत्यधिक लकड़ी की खपत होती है, बल्कि गंगा नदी भी प्रदूषित होती है। अधजली लकड़ियाँ और राख सीधे गंगा में प्रवाहित कर दी जाती हैं, जिससे जल की शुद्धता प्रभावित होती है और नदी तट पर आने वाले लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ता है।
आज आवश्यकता है कि मनिहारी गंगा घाट पर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण किया जाए। इससे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया स्वच्छ और तेज़ होगी, गंगा नदी प्रदूषण से बचेगी, और लोगों को आधुनिक सुविधा उपलब्ध होगी।
वैसे पिछले कुछ सालों में मनिहारी गंगा घाट की तस्वीर बदली है। यहाँ शौचालय बनाये गए हैं, CCTV कैमरा लगाए गए हैं, यात्रियों को बैठने के लिए शेड लगाए गए हैं, घाट पर बैरिकेटिंग तथा महिलाओं को वस्र बदलने के लिए घेरा भी लगाया गया है। थोड़ी और देखभाल मिले तो यह घाट एक बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है।
मनिहारी रेलवे स्टेशन - उपेक्षित जीवनरेखा
मनिहारी रेलवे स्टेशन कभी व्यापार और यात्रियों की सुविधाओं का प्रमुख केंद्र था। परंतु आज यह स्टेशन की हालत बदहाल है। यात्री सुविधाओं की कमी, प्लेटफॉर्म पर अव्यवस्था, यात्रियों के लिए स्वच्छ पेय जल की कमी, शौचालय की कमी, प्रतीक्षालय, गाड़ियों की कमी और आधुनिकीकरण की धीमी रफ्तार आदि है। मनिहारी स्टेशन पर लाखों कि संख्या में यात्री छठ पूजा, कार्तिक पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा, सावन माह का पूरा महीना तथा हर महीने के पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन आते हैं। जोगबनी, नेपाल, बंगाल, सहरसा, मधेपुरा, बनमनखी इत्यादि स्थानों से गाड़ी में यात्री आते हैं और मनिहारी घाट पर गंगा स्नान करके पुनः अपने गंतव्य स्थान तक चले जाते हैं। अगर सरकार थोड़ी संवेदनशीलता दिखाए तो यह स्टेशन पूरे इलाके की तस्वीर बदल सकती है। मनिहारी में केवल दो लाइन है जिसे बढ़ाकर तीन लाइन कर देना चाहिए जिससे मनिहारी से नई गाड़ी चलने की संभावना बन सके। दोपहर 02:00 बजे के बाद कटिहार से तेजनारायणपुर के लिए कोई सवारी गाड़ी नहीं है। शाम में कटिहार से तेजनारायणपुर के लिए भी पूर्व की भांति सवारी गाड़ी देना चाहिए जिससे बघार, कांटाकोश, तेजनारायणपुर, अमदाबाद के यात्री को सुविधा मिले। स्टेशन परिसर एवं प्लेटफार्म में CCTV कैमरा लगाना चाहिए, यात्रियों को बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए, कटिहार-सिलीगुड़ी इंटरसिटी एक्सप्रेस को मनिहारी से सुबह 05:00 बजे चलाया जाना चाहिए, यात्रियों को भी चाहिए कि बिना टिकट यात्रा न करें, जिससे रेलवे के राजस्व में वृद्धि हो।
गोगाबिल झील- पक्षी विहार
प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधताओं का प्रतीक गोगाबिल झील प्रवासी पक्षियों का प्रमुख केंद्र है। यहां नवम्बर से फरवरी तक हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं और यहां के वातावरण में निवास करते हैं। 1990 में यहाँ आनेवाली पक्षियों की बड़ी संख्या को देखकर इसे पक्षी विहार घोषित किया गया। यहाँ रूस तथा अन्य देशों के लगभग 300 से भी अधिक प्रकार के पक्षी यहाँ प्रवास के लिए आते हैं, जिसमें से लालसर, राजहंस, डोकहर, पचार, बटहर, बड़ा सिलिक, छोटा सिलिक, टिटही, पंतवा, बगुला, मंचरंगा, सीरियल चाह, लाल रिवाले ग्रीव, पोटचार्ड, स्पॉटवील, टील, कुट और ब्रहुमानी हंस प्रमुख है। प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह है कि अभी भी कम्युनिटी रिजर्व घोषित होने के बावजूद इसकी विकास के लिए धरातल पर कोई काम नहीं दिख रहा है। बिहार सरकार को इसपर ध्यान देना चाहिए जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।
पीर पहाड़ - "बाबा हजरत जीतनशाह रहमतुल्लाअलेह"
प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण, उत्तरी बिहार का सबसे ऊँचा स्थान पर "बाबा हजरत जीतनशाह रहमतुल्लाहअलेह" का मजार स्थित है। गंगा किनारे स्थित इस पहाड़ की ऊँचाई लगभग 60 फीट है। ऐसा माना जाता है कि 1338 ई० में स्व० अतुल मुखर्जी ने मन्नत पूरी होने के पश्चात इस पहाड़ पर भवन का निर्माण करवाया था, तब से पीर पहाड़ लोगों की आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है। दूर-दूर तक पीर बाबा की महिमा ऐसी फैली हुयी है कि सभी समुदाय के लोग प्रत्येक दिन यहाँ हजारो की संख्या मन्नते मांगने और दुआ करने आते हैं। प्रशासन को यहाँ साफ़-सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे यहाँ की सुंदरता बनी रहे। मजार की मरम्मत और सौन्दर्यकरण, बैठने की उचित व्यवस्था, सीढ़ियों तथा चढ़ाई वाले रास्तों को मजबूत बनाना, बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं जिसके लिए पुलिस कर्मी की तैनाती CCTV कैमरा लगाना इत्यादि पर प्रशासन को विशेष ध्यान देना चाहिए।
महर्षि मेंही दास कुटी- आध्यात्मिक धरोहर
मनिहारी की पहचान का एक और महत्वपूर्ण केंद्र है महर्षि मेंही दास कुटी। यह कुटी (आश्रम) महर्षि मेंही जी की स्मृति में बनाई गई है। संत साहित्य और साधना का यह स्थल आध्यात्मिक चेतना का अनमोल खजाना है। महर्षि मेंही दास का मनिहारी से संबंध आध्यात्मिक, स्मृति और प्रचार से जुड़ा हुआ है। मनिहारी स्थित महर्षि मेंही दास कुटी एक पवित्र स्थान है, जहाँ पर उनकी शिक्षाओं का अनुसरण और प्रचार किया जाता है। यह जगह उनके नाम पर बनी हुई है और आज भी उनके विचारों को जीवित रखे हुए है।
नवाबगंज ठाकुरबाड़ी - भक्ति और परंपरा का संगम
नवाबगंज में स्थित ठाकुरबाड़ी मेरी सांस्कृतिक धरोहर है। यह स्थान भक्ति और आस्था का संगम है, जहाँ धार्मिक अनुष्ठान और लोक परंपराएँ आज भी जीवंत हैं। लेकिन उचित संरक्षण न मिलने के कारण यह मंदिर अपनी पूरी चमक बिखेर नहीं पा रहा है। पर्यटन मानचित्र पर अगर इसे जगह मिले तो यह न केवल स्थानीय श्रद्धालुओं बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित कर सकता है।
मेरी व्यथा… मेरे पास संस्कृति है, इतिहास है, धार्मिक आस्था है, प्राकृतिक सुंदरता है, लेकिन अफसोस प्रशासन की अनदेखी भी है। यहाँ विकास की योजनाएँ आती हैं, मगर कागज़ पर ही रह जाती हैं। अगर थोड़ी दूरदर्शिता और ईमानदार प्रयास हों, तो मैं बिहार और पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता हूँ। मेरी अपील मैं चाहता हूँ कि मेरी आवाज़ सुनी जाए। मेरे गंगा घाट को साफ़ किया जाए, मेरे रेलवे स्टेशन को आधुनिक बनाया जाए, मेरी गोगबिल झील को संरक्षित किया जाए, मेरे पीर पहाड़, महर्षि मेहीं दास कुटी और नवाबगंज ठाकुरबाड़ी को सम्मान मिले। मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे सिर्फ़ एक कस्बे के रूप में न देखें, बल्कि मेरी खूबसूरती और संभावनाओं को पहचानें। क्योंकि… मैं मनिहारी हूँ — इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का संगम।
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