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शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

बाढ़ग्रस्त जीवन: एक अनकही पीड़ा

बिहार में बाढ़ की समस्या

हर साल बरसात के मौसम में ग्रामीण इलाकों के लोग बाढ़ की समस्या से जूझते हैं। यह समस्या केवल कुछ दिनों की परेशानी नहीं होती, बल्कि पूरे साल भर इसका असर गाँव की ज़िंदगी पर दिखाई देता है। बाढ़ जहां एक तरफ़ खेतों और फसलों को बर्बाद कर देती है, वहीं दूसरी ओर लोगों के घर, रोज़गार और स्वास्थ्य पर भी गंभीर संकट खड़ा कर देती है।

1. फसलें और आजीविका पर असर ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर रहती है। जब बाढ़ आती है तो खड़ी फसलें पानी में डूब जाती हैं। कभी-कभी खेतों की मिट्टी भी बहकर चली जाती है जिससे ज़मीन की उर्वरता कम हो जाती है। किसान पूरे साल की मेहनत गंवा बैठते हैं और कर्ज़ के बोझ तले दब जाते हैं।

2. घर और बुनियादी ढाँचे का नुकसान गाँवों में ज़्यादातर घर कच्चे होते हैं। बाढ़ के तेज़ बहाव में ये मकान गिर जाते हैं और लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो जाते हैं। सड़कें टूट जाती हैं, पुल बह जाते हैं और गाँव शहर से कट जाते हैं। इस कारण राहत सामग्री और दवाइयाँ पहुँचने में भी कठिनाई होती है।

3. मवेशियों को चारा एवं रहने की समस्या हो जाती है, आमजन अपने जान माल को लेकर किसी ऊंचे स्थान पर रहने को विवश हो जाते हैं। पशुओं के चारा के लिए उन्हें कई तरह के समस्याओं से जूझना पड़ता है। कई पशु पालक बाद आने से पहले ही सूखा चारा कि व्यवस्था कर लेते हैं, जिसके चलते उन्हें चारा के लिए इधर उधर भटकना नहीं पड़ता है

4. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बाढ़ के पानी में गंदगी मिल जाने से जलजनित बीमारियाँ जैसे हैजा, डायरिया, टाइफाइड और मलेरिया फैलने लगती हैं। स्वच्छ पानी और शौचालय की व्यवस्था ठप हो जाती है। सबसे अधिक परेशानी छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों को झेलनी पड़ती है।

5. शिक्षा और सामाजिक जीवन पर असर स्कूल बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं या राहत शिविरों में बदल दिए जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है और कई महीनों तक शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रहती है। सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है क्योंकि लोग रोज़गार की तलाश में गाँव छोड़कर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं।

समाधान की दिशा में प्रयास बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर कदम उठाने की ज़रूरत है। समय पर नदियों की सफाई और तटबंधों की मरम्मत हो। राहत शिविरों में स्वच्छ पानी, भोजन और दवाइयों की पर्याप्त व्यवस्था की जाए। किसानों को बाढ़ बीमा और फसल क्षतिपूर्ति का लाभ समय पर मिले। गाँवों में ऊँचे स्थानों पर पक्के घर और सामुदायिक शरण स्थल बनाए जाएँ। बाढ़ आने से पहले ही अपने जरूरी सामन, जरूरी कागजात को सुरक्षित रख लेना चाहिए तथा सूखा राशन जैसे चावल, दाल, आटा, आलू, प्याज, सोयाबीन इत्यादि तथा जलावन के लिए पहले से ही गैस या सुखी लकड़ी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए

Manihari

Author & Editor

Tinku Kumar Choudhary.

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